लॉक डाउन
चिड़ियों चहचहाहट ने मेरी आंखें खोल दी ,जाने कब शाम के साढ़े छह बज गए और पता भी ना चला या फिर इतने दिनों बाद जो सकून कि नींद थी उस से उठने का दिल ही ना हुआ।आज लॉकडाउन का पांचवां दिन था ,सुबह से शाम तक कुछ मिला ही नहीं काम करने को।जाने इतने मशीन से कब बन गए थे हम।
सुबह से शाम तक भाग दौड़ के इतने आदि बन गए थे कि खुद के लिए अपने परिवार के साथ बिताने के लिए मिला समय भी बोझिल सा गुजरने लगा, शायद आदतन हम मजबूर थे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी और भाग दौड़ पर।खैर सोचा चाय बनाई जाए खुद के लिए ,पानी गरम करने को गैस पर चढ़ा कर खुद को ऑनलाइन किया ताकि बोर ना हो जाऊ, नेट के बिना ना रहने की आदत को ठहरी।नोटिफिकेशंस की टन टन टन की आवाज ,ने खबर देखने के लिए मजबूर कर दिया था। ऐ न आई, आज तक,दैनिक जागरण ,दैनिक भास्कर सारे ऑनलाईन एप्प के नोटिफिकेशंस आने सुरू हो गए।
दरअसल पेशे से नई पत्रकार हूं ,और खबरों पर...