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भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और बाएं हाथ के बल्लेबाज सौरव गांगुली क्रिकेट में किसी परिचय के मोहताज नहीं है सौरव गांगुली ने भारतीय क्रिकेट टीम की कमान संभाली थी जब मैच फिक्सिंग स्कैंडल के बाद भारतीय टीम एक बेहद बुरे दौर से गुजर रही थी. सौरव गांगुली ने भारतीय टीम को नसीब लड़ना सिखाया बल्कि इस बुरे दौर से निकाल कर विदेशी सरजमीं पर जीत कर नए इतिहास भी बनाए. 51 के हुए दादा: सौरव गांगुली का जन्म 8 जुलाई 1972 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था इन्हें प्रिंस ऑफ कोलकाता और महाराज की उपाधि दी गई है जुलाई का महीना भारतीय क्रिकेट टीम के हिसाब से बेहद लकी माना जाता है क्योंकि जुलाई के महीने में ही भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तानों के जन्मदिन पढ़ते हैं इस महीने 7 जुलाई को महेंद्र सिंह धोनी 8 जुलाई को खुद सौरव गांगुली और सुनील गावस्कर का भी जन्मदिन इसी महीने में पड़ता है. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व ओपनर बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने एक बार मजाक मजाक में एक ट्वीट किया था कि जुलाई में पैदा हो और इंडियन क्रिकेट टीम के कप्तान बन जाओ. डेब्यू टेस्ट मैच में लगाया था: सौरव गांगुली को भारतीय टीम ने साल 1992 में ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर शामिल किया गया था लेकिन उनको टीम में जगह नहीं मिल पाई थी इसके 4 साल बाद सौरव गांगुली ने शानदार वापसी करते हुए इंग्लैंड के खिलाफ उसी की सरजमीं पर अपने टेस्ट मैच में शतक लगाया था. गांगुली इस पारी के बदौलत उन्होंने दुनिया को अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया था. जब स्टीव वा को कराया इंतजार: भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को 29 टीम में दादा का कर पुकारते थे उनकी दादागिरी के किस्से कई है ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत के दौरे पर आई थी तो उस समय तत्कालीन कप्तान स्टीव वा को सौरव गांगुली ने टॉस के लिए इंतजार कराया था उस समय ऑस्ट्रेलिया एक बेहद ही खतरनाक टीम हुआ करती थी सब भारतीय क्रिकेट टीम ने ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम के आंख में आंख डालकर देखना शुरू किया था और विश्व क्रिकेट इस चीज को समझ रहा था इसके बाद लौट के मैदान में नेटवेस्ट ट्रॉफी जीतने के बाद लौट की बालकनी में टी-शर्ट लहराना भला कौन भूल सकता है दादागिरी के ये 2 सबसे बड़े उदाहरण थे जो सौरव गांगुली अपने विरोधियों के सामने प्रस्तुत कर रहे थे