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नॉर्थ ईस्ट का खूबसूरत प्रदेश मणिपुर एक बार फिर जाति हिंसा में पिछले 3 दिनों से झुलस रहा है। मणिपुर की बीरेन सिंह सरकार से जारी हिंसा नहीं रुकी तब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अब मोर्चा संभाला है। केंद्र सरकार ने बड़ी मात्रा में सुरक्षा बलों को मणिपुर भेजा है। इससे पहले हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में धारा 144 लागू कर दी गई थी। राज्य में अगले पांच दिनों के लिए इंटरनेट भी बंद कर दिया गया है। अब भी हालात बहुत ज्यादा सुधरे नहीं हैं। एक सीनियर पुलिस अफसर ने न्यूज एजेंसी को बताया कि पहाड़ी इलाकों में सुरक्षाबलों और दंगाइयों के बीच मुठभेड़ की खबर है। उन्होंने बताया कि चुरचांदपुर जिले के कांगवई, बिष्णुपुर जिले के फौगाकचाओ और इम्फाल ईस्ट जिले के दौलाईथाबी और पुखाओ में ये मुठभेड़ हुईं। हालांकि अब सेना ने मोर्चा संभाल लिया है। यहां सेना, असम राइफल्स, रैपिड एक्शन फोर्स और पुलिस की टीमें चप्पे-चप्पे पर तैनात हैं। राज्य सरकार ने भी ‘दंगाइयों को देखते ही गोली मारने’ के आदेश दे दिए हैं। गुरुवार शाम को इम्फाल शहर के न्यू चेकॉन और चिंगमिरॉन्ग इलाके में स्थित दो शॉपिंग मॉल में दंगाइयों ने तोड़-फोड़ भी की। अब तक 9 हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित इलाकों में ले जाया गया है। वहीं, कई सैकड़ों लोगों को सुरक्षाबलों के कैम्पों में रखा गया है। हालांकि, अब तक इस हिंसा में मारे गए या घायलों को लेकर सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया गया है। हिंसा को देखते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को मणिपुर के सीएम एन. बीरेन सिंह, मिजोरम के सीएम जोरामथांगा और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा के साथ मीटिंग की। मणिपुर में असम राइफल्स की 34 और सेना की 9 कंपनियां तैनात है। इनके अलावा गृह मंत्रालय ने रैपिड एक्शन फोर्स की भी पांच कंपनियों को मणिपुर भेज दिया है। बता दें कि मणिपुर में बीते तीन दिनों से स्थिति खराब है। यहां मणिपुर हाई कोर्ट के उस आदेश के बाद हिंसा फैल गई, जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार को “मेइती” को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था। कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला था। इसी एकता मार्च के दौरान हिंसा भड़क गई। इतना ही नहीं अमित शाह ने कर्नाटक का दौरा भी रद कर दिया है। मणिपुर के पड़ोसी राज्यों असम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश ने भी मदद का हाथ बढ़ाया है।
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा का लंबा इतिहास रहा है—
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। राजधानी इम्फाल घाटी और इसके आसपास की पहाड़ियों में जातीय समूहों के बीच एक-दूसरे को लेकर तनातनी बनी रही है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार द्वारा आरक्षित वनों से आदिवासी ग्रामीणों को बेदखल किए जाने का अभियान शुरू होने के बाद यह मामला भीषण संघर्ष में बदल गया। बहुसंख्यक मेइती समुदाय को अनसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने के फैसले के खिलाफ आदिवासी समूहों के विरोध प्रदर्शन ने हिंसा की आग भड़काने में चिंगारी का काम किया। पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदाय को आजादी के बाद दशकों से अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है। मणिपुर में सरकार भले ही किसी भी पार्टी की रहे, लेकिन दबदबा हमेशा मैदानी इलाकों में रहने वाले मेइती समुदाय का रहा है। राज्य की कुल आबादी में मेइती समुदाय से संबंध रखने वाले लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है। मेइती समुदाय के ज्यादातर लोग इम्फाल घाटी में रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप, सरकार के कार्यों को अक्सर आदिवासियों, विशेष रूप से नागा और कुकी समुदाय के बीच संदेह की नजर से देखा जाता है। मणिपुर में इन दोनों समूहों के लोगों की आबादी लगभग 40 प्रतिशत है और यह ज्यादातर घाटी के आसपास के पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं। दिलचस्प बात यह है उपजाऊ इम्फाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल के 10वें हिस्से में स्थित है जबकि राज्य का 90 प्रतिशत हिस्सा पर्वतीय है, जिसे उग्रवादियों के लिए मुफीद ठिकाना माना जाता है। यह पर्वतीय क्षेत्र लंबे समय से उग्रवाद का गढ़ रहा है।
फरवरी में शुरू हुआ बेदखली अभियान एक और आदिवासी-विरोधी कदम है, जिसके चलते न केवल इससे प्रभावित कुकी समुदाय बल्कि उन अन्य आदिवासियों के बीच भी व्यापक आक्रोश और नाराजगी है, जिनके कई गांव आरक्षित वन क्षेत्र में आते हैं। पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के चुराचंदपुर जिले के दौरे से पहले भीड़ ने न्यू लमका कस्बे में उस स्थान पर तोड़फोड़ की और आग लगा दी, जहां वह एक समारोह को संबोधित करने वाले थे। अभी भी मणिपुर में हालात तनावपूर्ण हैं। लेकिन अब सेना ने मोर्चा संभाल लिया है और उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए गए हैं।