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देश के प्रख्यात पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषण वेद प्रताप वैदिक का निधन, अपने मुखर अंदाज के लिए जाने जाते थे, कई मीडिया संस्थानों से भी जुड़े रहे

Senior journalist Ved Pratap Vaidik passes away at 78
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देश के वरिष्ठ और प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनीतिक विश्लेषण, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता वेद प्रताप वैदिक का आज सुबह 78 साल की आयु में निधन हो गया है। वैदिक आज सुबह गुरुग्राम स्थित अपने घर पर बाथरूम में बेहोश हो गए थे। जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया तब डॉक्टरों ने उन्हें मृत कर दिया। ‌डाक्टरों ने दिल का दौरा पड़ने को मृत्यु का संभावित कारण बताया है। उनके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री हैं। उनकी पत्नी का पहले ही निधन हो गया था। वैदिक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की हिंदी समाचार एजेंसी ‘भाषा’ के संस्थापक-संपादक रहे थे। वह पहले टाइम्स समूह के समाचारपत्र नवभारत टाइम्स में संपादक (विचार) रहने के साथ ही भारतीय भाषा सम्मेलन के अंतिम अध्यक्ष थे।

उन्होंने पाकिस्तान का मोस्ट वांटेड आतंकी हाफिज सईद का इंटरव्यू किया था, जो काफी चर्चा में रहा था। वैदिक वह एक राजनीतिक विश्लेषक और स्वतंत्र स्तंभकार थे। वो नियमित रूप से देशभर में चल रहे मुद्दों पर अपने विचार लिखते थे। साल 2014 में वैदिक ने हाफिज सईद से मुलाकात की थी। उन्होंने सईद के इंटरव्यू को अपने वेबसाइट पर सार्वजनिक भी किया, जिस पर काफी विवाद छिड़ा था। भारत लौटने पर उन्होंने कहा था कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान जाते हैं, तो वहां उनका जोरदार स्वागत नहीं होगा। इस मामले में उनके खिलाफ राजद्रोह का केस भी दर्ज हुआ था। वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक वातावरण की भाषा बनाई और भारतीय आकाश गंगा को उनके उचित स्थान के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डाॅ राममनोहर लोहिया की महान परंपरा को आगे बढ़ाने वाले योद्धाओं में वैदिक का नाम अग्रणी है।

Senior journalist Ved Pratap Vaidik passes away at 78

राष्ट्रीय राजनीति, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तृत्व, संगठन-कौशल आदि कई क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदशित करने वाले अनोखे व्यक्ति के धनी डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा प्रथम श्रेणी के छात्र रहे हैं। वे रूसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत के बारे में भी जानकारी देते हैं। उन्होंने अपना पीएचडी न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय, मास्को के ‘इंस्टीट्यूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल आफ ओरिनेटल एंड एफ्रीकन स्टडीज’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में शोध कार्य के दौरान अध्ययन और शोध किया गया। वैदिक ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपनी अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिंदी में लिखा है।

उनका शुद्धिकरण हो गया। वह राष्ट्रीय नहीं बना। 1965-67 में संसद हिल गई। डा. राममनोहर लोहिया, मधुर लिमये, आचार्य कृपालानी, इंशा गांधी, गुरु गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी पर्वती, चंद्रशेखर, हिरेन मुखर्जी, हेम बरूआ, भागवत झाड़ा, प्रकाशवीर शास्त्री, किशन पतायक, डाॅ. जाकिर हुसैन, रामधारी सिंह दिनकर, डाॅ. धर्मवीर भारती, डा. हरिवंशराय बच्चन, प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद जैसे लोगों ने वैदिक का डटकर समर्थन किया। सभी पक्षों के समर्थन से वैदिक ने विजय प्राप्त की, नया इतिहास रचा। पहली बार उच्च खोज के लिए भारतीय आकाशगंगा के द्वार खुले। वेद प्रताप वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ 13 साल की उम्र में की थी। हिंदी सत्याग्रहियों के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल में रहे। बाद में छात्र नेता और भाषाई आंदोलनकारी के तौर पर कई जेल यात्राएं कीं।

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