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Hindi Diwas 2022: राजभाषा के 73 साल, देश में ‘हिंदी के राष्ट्रभाषा’ बनने पर दक्षिण राज्यों की अड़चन

Hindi Diwas 2022: Southern Slice | Hindi Imposition Debate
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एक ऐसी भाषा जिसमें मिठास हो, मधुरता हो, भारत की पहचान हो, पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने वाली ‘हिंदी’ ही है । इसके बावजूद देश में हिंदी भाषा को लेकर सौतेला व्यवहार किया जाता है। 73 साल बाद भी हिंदी हमारी देश की ‘राष्ट्रभाषा’ नहीं बन सकी। आज भी ‘भारत के कई राज्यों में हिंदी अपनी जड़े नहीं जमा पाई है। इसका सबसे बड़ा कारण दक्षिण भारत के राज्यों के राजनीतिक दलों की राजभाषा को लेकर नकारात्मक सोच रही है’ ।‌ ‘वोट बैंक की खातिर नेता राजभाषा पर भी सियासी खेल खेलते आ रहे हैं’ । हिंदी ऐसी भाषा है जिस पर सबसे ज्यादा राजनीति भी हुई । जबकि विश्व पटल पर हिंदी लगातार आगे बढ़ती जा रही है। ‌राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिंदी हृदय की भाषा है। आज 14 सितंबर है। इस दिन हर साल ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे का एक कारण देश में अंग्रेजी भाषा के बढ़ते चलन व हिंदी की उपेक्षा को रोकना है। हिंदी दिवस के आते ही हिंदी पखवाड़ा, हिंदी सप्‍ताह या हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन दक्षिण के कई राज्यों में यह विरोध के रूप में मनाया जाता है। ‌‌हमारे देश में समय समय पर केवल राजनैतिक लाभ के लिए हिंदी का विरोध होता है। यह परंपरा आजादी के पहले से जारी है। अब तो कुछ नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। बता दें कि 2019 में जब देश के गृहमंत्री अमित शाह ने एक देश एक भाषा की बात कही थी तब भी इसका जोरशोर से विरोध हुआ था। इस मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, डीएमके नेता स्टालिन, पन्नीरसेल्वम, संगीतकार एआर रहमान, कर्नाटक के पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी कनिमोझी समेत कई दक्षिण के नेता विरोध में कूद पड़े थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि पूरे देश को एकता की डोर में बांधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है, तो वह सर्वाधिक बोली जाने वाली हिंदी भाषा ही है। उन्होंने एक देश, एक भाषा की बात का हवाला देते हुए कहा कि महात्मा गांधी और सरदार पटेल के साथ साथ देश के कई गैर हिंदी भाषी नेताओं ने इसकी पैरवी की थी। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का बीड़ा हिंदी भाषी नेताओं ने नहीं बल्कि महात्मा गांधी, रवीन्द्र नाथ टैगोर, सी राजगोपालाचारी, सरदार पटेल और सुभाषचन्द्र बोस सरीखे गैर-हिंदी भाषी नेताओं ने उठाया था। ये सभी हिंदी भाषी प्रदेशों से न होते हुए भी हिंदी की ताकत से वाकिफ थे। इसके बावजूद हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी। आइए जानते हैं राजभाषा और राष्ट्रभाषा में क्या अंतर है। राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है, जबकि राष्ट्रभाषा स्वाभाविक रूप से सृजित शब्द इस प्रकार राजभाषा प्रशासन की भाषा है तथा राष्ट्रभाषा जनता की भाषा। समस्त राष्ट्रीय तत्वों की अभिव्यक्ति राष्ट्रभाषा में होती है, जबकि केवल प्रशासनिक अभिव्यक्ति राजभाषा में होती है।

कई देशों और ग्लोबल बाजार में हिंदी खूब चमक रही, विश्व में तीसरी भाषा के रूप में उभरी:

UN General Assembly resolution on multilingualism mentions Hindi language
UN General Assembly resolution on multilingualism mentions Hindi language in 2022

भले ही देश के कुछ राज्यों में राजभाषा का विरोध होता हो लेकिन हिंदी भारत की पहचान है, जो दुनियाभर में बसे हिंदी भाषी लोगों को एकजुट करती है। आज पूरा विश्व एक ग्लोबल बाजार के रूप में उभर चुका है । जिसमें हिंदी स्वयं ही तीसरी भाषा के रूप में उभर गई है । संख्या के आधार पर विश्व में हिंदी भाषा, अंग्रेजी, चीनी मंदारिन भाषा के बाद तीसरे स्थान पर है। 2022 में ही हिंदी में संयुक्त राष्ट्र संघ की सभी सूचना भी जारी होने लगे हैं। हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ की सातवीं आधिकारिक भाषा बनने की सबसे बड़ी दावेदार है। कई बड़ी-बड़ी कंपनियों में हिंदी खूब फल-फूल रही है । गूगल फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर और याहू समेत तमाम कंपनियों ने हिंदी भाषा का बहुत बड़ा बाजार बना दिया है और हिंदी के नाम पर ही अरबों रुपये की कमाई कर रहे हैं । दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां गर्व से हिंदी भाषा बोली जाती है। नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, पाकिस्तान,न्यूजीलैंड, यूएइ, फिजी, युगांडा, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरीशस और दक्षिण अफ्रीका में भी हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है।

देश में 14 सितंबर 1949 हिंदी राजभाषा हुई, अभी तक नहीं मिल सका राष्ट्रभाषा का दर्जा–

Southern Slice | Hindi Imposition Debate

बता दें कि साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो कई बड़ी समस्याएं थीं। जिसमें से एक समस्या भाषा को लेकर भी थी। भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती थीं। ऐसे में राजभाषा क्या होगी ये तय करना एक बड़ी चुनौती थी। हालांकि, हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यही वजह है कि राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। संविधान सभा ने लंबी चर्चा के बाद 14 सितंबर को ये फैसला लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। इससे बाद ही दक्षिण के राज्यों ने इसका खुल कर विरोध किया था। तमिलनाडु के कई लोगों ने तो हिंदी राजभाषा को लागू किए जाने के विरोध में आत्महत्या तक कर डाली थी । तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने कभी भी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है बल्कि उल्टा हिंदी का विरोध करते ही रहे हैं । देश में हिंदी के पिछड़ने की एक वजह यह भी है कि हायर एजुकेशन हिंदी माध्‍यम से नहीं है। कोर्ट के आदेश भी अंग्रेजी में आते हैं। इससे पता ही नहीं चलता कि आरोप या बचाव की दलील क्‍या दी गई। क्‍योंकि हर कोई अंग्रेजी नहीं जानता। कॉम्‍पटीशन भी अंग्रेजी में होते हैं। उन्‍होंने कहा कि आज हिंदी सिर्फ अनुवाद की भाषा बनकर रह गई है। जिन शब्‍दों का चलन नहीं है वह भी इस्‍तेमाल किए जा रहे हैं। अंग्रेजी के वर्चस्व में हिंदी पिछड़ गई है। इसलिए जब तक उच्‍च शिक्षा हिंदी में नहीं मिलेगी तब तक हिंदी का उत्‍थान नहीं हो सकता।

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