
क्या आजादी के बाद पहले 26 जनवरी का परेड राजपथ पर ही हुआ था? जानिए आजादी के संघर्ष के गवाह राजपथ की कहानी

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भारत का गौरव, इतिहास, आजादी के संघर्ष और न जाने कितने ऐतिहासिक इवेंट का गवाह, राजपथ। राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक के 3 किमी तक का एकदम स्ट्रेट लाइन पहले किंग्स वे के नाम से जाना जाता था जिसे बदलकर राजपथ कर दिया गया लेकिन अब इसका भी नाम बदला जा रहा है। नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) ने राजपथ और सेंट्रल विस्टा लॉन का नाम बदलकर ‘कर्तव्यपथ’ करने के संबंध में सात सितंबर को एक विशेष बैठक बुलाई है। प्रस्ताव को परिषद के समक्ष रखा जाएगा। इंडिया गेट पर नेताजी की प्रतिमा से लेकर राष्ट्रपति भवन तक पूरा मार्ग और क्षेत्र कर्तव्यपथ के नाम से जाना जाएगा। इसके साथ ही इसका स्वरूप भी काफी भव्य हो गया है। राजपथ को दोनों तरफ 6-6 फीट चौड़ा कर दिया गया है।

26 जनवरी के दिन हर साल न जाने कितने गौरवशाली नजारों का गवाह बनते रहे इस राजपथ का नाम बदलकर कर्तब्यपथ रखने के पीछे अंग्रेजो की परछाई से खुद को आज़ाद करने की एक सफल कोशिश। आजादी के बाद प्रिंस एडवर्ड रोड को विजय चौक, क्वीन विक्टोरिया रोड को डॉ. राजेंद्र प्रसाद रोड, ‘किंग जॉर्ज एवेन्यू’ रोड का नाम बदलकर राजाजी मार्ग किया गया था। इन महत्वपूर्ण सड़कों के नाम अंग्रेजी ब्रिटिश सम्राटों के नाम पर थे। वहीं दूसरी ओर दिल्ली में भारतीय शासकों और शासक राजवंशों के नाम पर भी सड़कों के नाम थे। जैसे फिरोज शाह रोड, पृथ्वी राज रोड, लोदी रोड, औरंगजेब रोड, अकबर रोड आदि। मोदी सरकार के कार्यकाल में कई रास्तों का का नाम बदला गया है।
साल 2015 में रेसकोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग किया गया, जहां प्रधानमंत्री आवास है। साल 2015 में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड किया गया। साल 2017 में डलहौजी रोड का नाम दाराशिकोह रोड कर दिया गया। अब काफी समय से अकबर रोड का नाम बदलने की भी बात हो रही है। इस तरह से ऐसा लगता है कि देश चुन-चुनकर अब अंग्रेजों की परछाई से निकल रहा है।
अब एक नज़र राजपथ के इतिहास पर
राजपथ यानी किंग्स-वे, ब्रिटिश हुकूमत की शाही पहचान। 1911 में किंग जॉर्ज पंचम दिल्ली दरबार में हिस्सा लेने के लिए यहां आए थे। इस दौरान कोलकाता की जगह दिल्ली को भारत (ब्रिटिश शासन) की राजधानी बनाने की घोषणा हुई थी। इसलिए अंग्रेजों ने किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में इस जगह का नाम किंग्सवे रखा था। किंग्सवे के रूप में यह ब्रिटिश हुकूमत की शाही पहचान का प्रतीक था। स्वतंत्रता के बाद 1955 में इसका नाम राजपथ किया गया। किंग्सवे से राजपथ और अब कर्तव्यपथ तक की इसकी यात्रा बदलाव, बदलते अर्थों और पहचानों का एक उदाहरण है।
ऐसा नहीं है कि राजपथ पर आजादी के तुरंत बाद परेड शुरू हो गई थी। बल्कि वर्ष 1950 की पहली गणतंत्र दिवस परेड इर्विन स्टेडियम में हुई थी, जिसे आज हम नेशनल स्टेडियम के नाम से जानते हैं। इसके बाद भी अगले चार साल तक गणतंत्र दिवस इर्विन स्टेडियम, किंग्स-वे कैंप से लेकर लाल किला और रामलीला मैदान तक आयोजित होता रहा। वर्ष 1955 में जाकर राजपथ 26 जनवरी परेड का स्थायी स्थल बन गया।
राजपथ से देश ने आजादी के बाद कई विरोध आंदोलनों का जन्म होते देखा है। 1988 में यहां से किसानों का विशाल विरोध प्रदर्शन हुआ था। 2012 में निर्भया की मौत के बाद विरोध प्रदर्शन भी यहीं हुआ था। साल 2019 में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का गवाह भी ऐतिहासिक राजपथ रहा है। इसके अलावा हर साल देश अपनी सैन्य ताकत और सांस्कृतिक विविधता का नजारा भी इसी ऐतिहासिक राजपथ पर देखता है।राजपथ को पहले एलीट क्लास के लिए एक सड़क के रूप में देखा जा सकता है। जब इसका नाम जनपथ किया गया तो इस मूल में भी बदलाव देखने को मिला। यह, वास्तव में आम आदमी के लिए एक सड़क बन गई है।