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देश में लोकसभा या विधानसभा चुनाव में जनता अपने-अपने उम्मीदवारों को वोट डालती है। चुनावों में निर्वाचन आयोग लोगों को ‘नोटा’ का भी ऑप्शन देता है। नोटा का ऑप्शन इसलिए रहता है कि मान लीजिए अगर जनता को कोई प्रत्याशी पसंद नहीं है तो वह अपना वोट नोटा पर दबा सकता है। हाल के वर्षों में नोटा पर वोट देने का चलन तेजी के साथ बढ़ रहा है। नोटा यानी यानी नन ऑफ द एबव। चुनाव में कोई वोटर किसी प्रत्याशी को वोट देने लायक नहीं समझता, तो नोट की बटन दबा देता है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पिछले 5 साल में लगभग 1.29 करोड़ लोगों ने इसका इस्तेमाल किया है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने ये डेटा 2018 से 2022 के दौरान हुए चुनावों के आधार पर दिया है। लोकसभा चुनाव में नोटा को सबसे ज्यादा 51,660 वोट बिहार के गोपालगंज में मिले। सबसे कम 100 वोट का रिकॉर्ड लक्षद्वीप में बना। एडीआर ने कहा कि अगर किसी इलाके में तीन या उससे ज्यादा अपराधी रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार मैदान में हैं तो वहां नोटा का ज्यादा इस्तेमाल हुआ है। साल 2018 में विधानसभा चुनावों में नोटा को 26,77,616 वोट मिले। बिहार के 217 रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्रों में सबसे अधिक 6,11,122 वोट हासिल किए हैं।