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नई दिल्ल, 25 जून। क्रिकेट जगत में एक समय था जब वेस्टइंडीज टीम का राज हुआ करता था। 1975 में शुरु हुआ वर्ल्ड कप का सफर में एक ही बादशाह था वेस्टइंडीज जिसकी बादशाहत खत्म करने के लिए कपिल देव की एकादश ने हर भारतीयों को मुस्कुराने की वजह से दे दी और पूरा भारत बोल उठा चक दे इंडिया।
विविय़न रिचर्ड्स और क्लाइव लॉयड जैसे खिलाड़ियों के सामने अच्छे-अच्छों की पसीने छूट जाते थे ऐसे में जब भारतीय टीम इंग्लैंड की धरती पर पहुंची तो सभी को यही उम्मीद थी कि एक विदेशी टूर करने टीम गई है और बस दो-चार दिन घूमकर वापस आ जाएगी। टूर्नामेंट के दौरान टीम इंडिया की स्थिति इतनी बुरी थी कि अगर कपील देव ने 175 रनों की पारी नहीं खेली होती तो टीम इंडिया कब का बाहर हो चुकी होती। लेकिन टीम के अंदर था कुछ कर गुजरने की चाह और वही चाह ने उसे वर्ल्ड की ट्रॉफी उठाने में मदद की।





कपिलदेव की पूरी टीम वेस्टइंडीज की टीम के सामने घूटने टेक दिए क्योंकि लार्ड्स की हरी पीच पर वेस्टइंडीज के गेंदबाजों ने कहर बरपाना शुरु कर दिया था और टीम 183 रनों पर ऑल आउट हो गई। बाकियों के लिए यह सिर्फ 183 रन था लेकिन भारत के कप्तान के लिए यह मैच वीनिंग टोटल था। कपिलदेव ने कहा कि ये पिच 30% बैटिंग और 70% बॉलिंग वाली है। हमने 30% में 183 रन बनाये हैं, लेकिन इन्हें भी इतने ही रन बनाने पड़ेंगे। इसके लिए हम अपनी 70 फीसदी बॉलिंग करनी पड़ेगी।
भारतीय टीम ही नहीं बल्कि वहां आए दर्शकों को भी यह उम्मीद जग चुकी थी कि भारत इस मैच में कुछ कर पाएगा। हालांकि इंग्लैंड के दर्शक भारतीय टीम से नाराज थे क्योंकि भारत के ही हाथों हार के कारण इंग्लैंड टूर्नामेंट से बाहर हुआ था। फिर जब मैच शुरु हुआ तो संधू ने भारत को पहली सफलता दिलाई जब टीम का कुल स्कोर 5 रन था। लेकिन फिर क्रिच पर आए वीव रिचर्ड्स के कोप का शिकार भारतीय गेंदबाजों को होना पड़ा।






वीव रिचर्ड्स के मुख्य शिकार बने थे मदन लाल। कपिल को स्कोरबोर्ड पर बढ़ते हुए रन दिख रहे थे और उन्हें ये भी दिख रहा था कि विव रिचर्ड्स मदन लाल को कूट रहे थे। वो गेंदबाज़ी में चेंज करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मदन लाल ने उनसे एक और ओवर देने को कहा। कपिल ने साफ़ इन्कार कर दिया लेकिन मदन नहीं माने। लम्बी बहस के बाद, झुंझलाहट के साथ कपिल ने मदन लाल को गेंद दे दी। और उस एक ओवर ने पलड़ा फिर भारत की ओर झुका दिया। भारतीय क्रिकेट के इतिहास का सबसे कीमती कैच, इसी ओवर में लिया गया। पीछे की ओर बीस कदम दौड़कर कपिल देव ने वो कैच पकड़ा
और लार्ड्स के मैदान पर दर्शकों ने जाम झलकाना शुरु कर दिया था। फिर देखते ही देखते चिजे शुरु हुई और भारत जीत की ओर कदम बढ़ाता चला गया। जिमी अमरनाथ ने माइकल होल्डिंग को एलबीडब्लू आउट किया तो पूरा भारत ही नहीं बल्कि विश्व दांतों तले अंगुलिया दबाने लगा क्योंकि भारत यह मैच जीत चुका था। इस जीत के साथ ही भारतीय क्रिकेट का स्वरुप ही बदल चुका था।

मैच के बाद इस बात का भी खुलासा हुआ कि एनकेपी साल्वे और बोर्ड सेक्रेटरी एमए चिदंबरम ने टीम को बताया कि वो चाहे जीतें या हारें, हर किसी को 25 हज़ार रुपये मिलेंगे। मतलब उस समय यह राशि बहुत बड़ी थी। अगर बात आज के क्रिकेट की बात की जाए तो भारतीय पूर्व कप्तान, विराट कोहली हर साल 7 करोड़ रुपये कमाते हैं और इसमें वह पैसा शामिल नहीं है जो वह आईपीएल से कमाते हैं। इसके बाद, रणजी ट्रॉफी के खिलाड़ी चार दिवसीय खेल में प्रतिदिन 35,000 रुपये से अधिक कमाते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए यह हैरान करने वाला है कि 1983 में पूरी टीम को केवल 29,400 रुपये का भुगतान किया गया था।