

JOIN OUR WHATSAPP GROUP
28 फरवरी साल 2002.. देखते ही देखते गुजरात का गुलबर्ग सोसाइटी आग और हिंसा के लपेट में समाहित होता चला गया था। लोगों की आवाज चीख में बदलती चली गई क्योंकि कई लोगों को जींदा जला दिया गया। मारे जाने वालों में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री समेत कुल 69 लोग शामिल थे। एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री ने आरोप लगाया था कि उनके पति ने पुलिस और उस वक्त मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की। 2006 में उन्होंने गुजरात पुलिस के महानिदेशक से नरेंद्र मोदी समेत कुल 63 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की अपील की। ये अपील ठुकरा दी गई।
मामला अगर यही रुक जाता तो समझ आती लेकिन यह केस एक मैराथन सुनवाई की तरफ बढ़ चुका था क्योंकि जाकिया ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया था। लेकिन उस अपील को भी कोर्ट ने साल 2007 में खारीज कर दिया। फिर जाकिया साल 2008 में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। जहां कोर्ट ने उनकी याचिका का संज्ञान लेते हुए साल 2009 में एक एसआईटी का गठन किया और जांच के आदेश दिए। तीन सालों तक चली जांच के बाद एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट अहमदाबाद की निचली अदालत को सौंप दी। जिसमें साफ तौर पर लिखा था कि मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मुकदमा चलाने का कोई ठोस सबूत नहीं है।
अब समय आ गया कि इस मामले को बंद किया जाए इसलिए एसआईटी ने 8 फरवरी 2012 को अदालत में अपनी रिपोर्ट दाखिल की जिसमें नरेन्द्र मोदी सहित 59 लोगों को क्लीन चीट दिया गया। ज़किया ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में इस रिपोर्ट के खिलाफ प्रोटेस्ट पेटिशन दाखिल की. इसे मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया। 2017 में गुजरात हाई कोर्ट ने भी मजिस्ट्रेट के आदेश को सही करार दिया। 2018 में सुप्रीम कोर्ट पहुंची ज़किया की अपील पर 3 साल तक सुनवाई नहीं हो पाई। क्योंकि हमेशा जाकिया द्वारा सुनवाई टालने की बात होती रही। आखिरकार कोर्ट ने विस्तृत सुनवाई के बाद 9 दिसंबर 2021 को मामले पर आदेश सुरक्षित रख लिया।
जाकिया की तरफ से वकील रहे राज्यसभा सांसद कपील सिब्बल ने एसआईटी पर सबूत के अनदेखी का आरोप लगया था। लेकिन आज जब इस पूरे मामले में फैसला सुनाया गया तो जस्टिस ए एम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी टी रविकुमार की बेंच ने एसआईटी की जांच की तारीफ करते हुए कहा कि यह यह अपील आदेश देने योग्य नहीं है। साथ ही यह भी कहा है कि इस मामले को जानबूझकर लंबा खींचा गया। कुछ लोगों ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर प्रयास किया कि मामला चर्चा में बना रहे। हर उस व्यक्ति की ईमानदारी पर सवाल उठाए गए, जो मामले को उलझाए रखने वाले लोगों के आड़े आ रहा था। न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने वाले लोगों पर उचित कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।