
हिंदी साहित्य में बुकर पुरस्कार जीतने वाली देश की पहली महिला हैं गीतांजलि श्री

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पिछले महीने के 27 मई भारतीय साहित्यकारों के लिए बहुत ही गौरवशाली दिन रहा। ऐसा पहली पहली बार हुआ है जब हिंदी के उपन्यास को दुनिया का दूसरा बड़ा पुरस्कार हासिल हुआ है। देश की प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासकार गीतांजलि श्री के लिखे गए ‘रेत समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद (टॉम्ब ऑफ सैंड) को लंदन में साहित्य का प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार दिया गया है।
We are delighted to announce that the winner of the #2022InternationalBooker Prize is ‘Tomb of Sand’ by Geetanjali Shree, translated from Hindi to English by @shreedaisy and published by @tiltedaxispress@Terribleman @JeremyTiang @mervatim @VascoDaGappah @VivGroskop pic.twitter.com/TqUTew0Aem
— The Booker Prizes (@TheBookerPrizes) May 26, 2022
ये उपन्यास बुकर पुरस्कार के साथ ही कई उपलब्धियां गीतांजलि श्री के नाम कर गया। ये किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गई पहली साहित्यिक कृति बन गया है जिसे बुकर पुरस्कार मिला है। पुरस्कार मिलने पर भारतीय साहित्यकार गीतांजलि का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। गीतांजलि श्री ने कहा कि ये एक तरह से हिंदी भाषा और साहित्य की मान्यता है। उन्होंने साथ ही ये भी जोड़ा कि हिंदी के पास समृद्ध साहित्य है जिसे खोजने की जरूरत है। बुकर पुरस्कार ग्रहण करने के बाद गीतांजलि श्री ने कहा कि कभी भी ये पुरस्कार जीतने का सपना नहीं देखा था, कभी नहीं सोचा था कि ये भी कर सकती हूं। ये कितना बड़ा सम्मान है। बता दें कि किसी हिंदी उपन्यास के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री के लिए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को पाने से पहले का सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। श्री के मूल उपन्यास का नाम ‘रेत समाधि’ है और इसका अंग्रेजी संस्करण है ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ इसका अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया है। पुरस्कार की घोषणा होने के बाद से श्री और रॉकवेल को दुनिया भर से बधाई संदेश मिले। इस पुरस्कार के बाद से हिंदी साहित्य भी चर्चा के केंद्र में बना हुआ है, लेकिन लेखिका का मानना है कि इस लय को बनाए रखने के लिए कुछ गंभीर प्रयासों की आवश्यकता होगी।गीतांजलि श्री का मूल उपन्यास रेत समाधि हिंदी भाषा में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था। राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी भी कार्यक्रम में मौजूद थे। अशोक माहेश्वरी ने कहा कि ये भारतीय साहित्यिक समुदाय के लिए बहुत बड़ी बात है कि एक हिंदी उपन्यास को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिया गया।मालूम हो कि नोबेल पुरस्कार के बाद बुकर पुरस्कार को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। यह पुरस्कार लेखनी में अनुपम योगदान देने वालों लेखकों और साहित्यकारों को दिया जाता है। बुकर पुरस्कार की स्थापना साल 1969 में इंगलैंड की बुकर मैकोनल कंपनी द्वारा की गई थी। इस पुरस्कार में 60 हजार पाउंड की राशि विजेता लेखक को दी जाती है। पहला बुकर पुरस्कार अलबानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को दिया गया था। बुकर पुरस्कार का पूरा नाम मैन बुकर पुरस्कार फार फिक्शन है।