भारतीय किसान युनियान ने राकेश टीकैत और उनके भाई को दिखाया युनियन से बाहर का रास्ता

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राकेश टीकैत, जो अचानक से किसानों का मसीहा बनकर आ गए और एक तरह से कहा जाने लगा कि किसानों के हक के लिए लड़ने वाला नेता मिल गया है जो मोदी सरकार के खिलाफ डटकर खड़ा है। दिल्ली के सिंघु बॉर्डर हो या फिर देश में कही भी किसानों की रैली, उसमें चर्चा राकेश टीकैत की होने लगी थी लेकिन आज जिस युनियन के सहारे राकेश टीकैत पूरे देश में भाजपा सरकार के खिलाफ लड़ने लगे वहीं युनियन उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश में उत्तर भारत में किसान आंदोलन और संगठन के प्रणेता चौधरी महेंद्र सिंह की पुण्यतिथि के मौके पर सभी किसान नेता पहुंचे थे। लेकिन अचानक से खबर आने लगी कि 33 साल पूराने साथी एक-दूसरे से अलग हो रहे हैं। यानि किसान आंदोलन का हिस्सा रहे भारतीय किसान यूनियन के दो फाड़ हो गए। उत्तर प्रदेश में किसानों के मसीहा कहे जाने वाले महेन्द्र सिंह टिकैत की आज पुण्यतिथि थी जिसमें किसान नेताओं ने बगावत का ऐलान कर नए संगठन का ऐलान कर दिया। भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक के नाम का संगठन अब किसानों की समस्याओं के लिए लड़ाई लड़ेगा।राजेश सिंह चौहान को इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया राजेंद्र सिंह मलिक को संरक्षक बनाया गया।
अलग होने का क्या है कारण
दरअसल किसानों के नए अध्यक्ष राजेश सिंह चौहान का मानना है कि किसान आंदोलन के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश में चुनाव हुआ जिसमें युनियन के नेता दिलचस्पी दिखाने लगे। ईवीएम की सुरक्षा पर बात करने लगे थे जिसका युनियन के सिद्धांतों से कोई लेना-देना नहीं है। राकेश टिकैत अलग-अलग राज्यों में घूम-घूमकर एक पार्टी का प्रचार तो दूसरे पार्टी का विरोध करने लगे थे। जब युनियन के नेताओं ने राकेश टिकैत के इस कदम पर विरोध जताया तो उन्होंने किसी की न सुनी। भारतीय किसान यूनियन परिवार की पार्टी बन गई. राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 33 साल तक काम करने वाले कार्यकर्ता नहीं परिवार के लोग ही गुपचुप तरीके से शामिल किया जाने लगा।
किसान युनियन के नए अध्यक्ष ने कहा कि उत्तर प्रदेश में सभी डीएम और अन्य अधिकारियों को राकेश टिकैत द्वारा भाजपा कार्यकर्ता बताया जाना बेहद दुखद था क्योंकि उससे हमारे युनियन का कोई मतलब नहीं बनता है। इसके साथ ही जब भी किसी राज्य में चुनाव हुआ, किसानों की गिनती चंद लोगों के बीच रह गई। यानि एक विशेष नामों के बीच किसान युनियन सिमटता दिख रहा था जो एकता को खत्म करने जैसे खतरे का घोतक था। इसलिए आज यह फैसला लिया गया।