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स्थापना दिवस आज: गढ़वाल राइफल्स की वीरता-पराक्रम के 135 गौरवशाली वर्ष, जानिए इस सेना का इतिहास

Garhwal Rifles: A Brief History Of Infantry Regiment
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आज उत्तराखंड के लिए वीरता और गौरवशाली से भरा दिन है। ‌देवभूमि की धरती जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्यता, हरी-भरी वादियां और धार्मिक पर्यटन स्थलों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। वहीं यह देवभूमि की माटी कई वीर गाथाओं और शहादत के लिए भी जानी जाती है। आज उत्तराखंड के लिए एक और पराक्रम और वीरता को याद करने का गौरवशाली दिन है। ‌आज गढ़वाल राइफल्स का 135वां स्थापना दिवस धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, धन सिंह रावत, मदन कौशिक समेत कई नेताओं ने ट्वीट करते हुए शुभकामनाएं दी हैं। बता दें कि गढ़वाल राइफल्स की स्थापना 5 मई 1887 अल्मोड़ा में हुई थी। बाद में इसी साल 4 नवंबर 1887 को लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स की छावनी स्थापित की गई है। वर्तमान में यह गढ़वाल राइफलस रेजिमेंट का ट्रेनिंग सेंटर है। वर्ष 1890 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हेनरी लैंसडाउन के नाम पर तत्कालीन उत्तराखंड के क्षेत्र कालुडांडा को लैंसडाउन नाम दिया गया था। वर्तमान में यह स्थान उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। बता दें कि गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना का एक सैन्य-दल है। 1891 में 2-3 गोरखा रेजीमेंट की दो कंपनियों से एक गोरखा पलटन 2-3 क्वीन अलेक्टजेन्टास आन (बटालियन का नाम) खड़ी की गई और शेष बटालियन को दोबारा नए बंगाल इन्फैंट्री की 39वीं गढ़वाल रेजीमेंट के नाम से जाना गया। बैज से गोरखाओं की खुखरी हटाकर उसका स्थान फोनिक्स बाज को दिया गया। इसने गढ़वाल राइफल्स को अलग रेजीमेंट की पहचान दी। 1891 में फोनिक्स का स्थान माल्टीज क्रास ने लिया। इस पर द गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट अंकित था। बैज के ऊपर पंख फैलाए बाज थे, यह पक्षी शुभ माना जाता था। इससे गढ़वालियों की सेना में अपनी पहचान का शुभारंभ हुआ।

गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट युद्ध का नारा है, ‘बद्री विशाल लाल की जय’–

उत्तराखंड में स्थित गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट सेंटर रेजिमेंट का युद्ध नारा है ‘बद्री विशाल लाल की जय’। गढ़वालियों की युद्ध क्षमता की असल परीक्षा प्रथम विश्व युद्ध में हुई जब गढ़वाली ब्रिगेड ने ‘न्यू शैपल’ पर बहुत विपरीत परिस्थितियों में हमला कर जर्मन सैनिकों को खदेड़ दिया था। 10 मार्च 1915 के इस घमासान युद्ध में सिपाही गब्बर सिंह नेगी ने अकेले एक महत्वपूर्ण निर्णायक व सफल भूमिका निभाई। कई जर्मन सैनिकों को सफाया कर खुद भी वह वीरगति को प्राप्त हुए। उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 45 के बीच में गढ़वाल राइफल्स ने अपनी अहम भूमिका निभाई । ऐसे ही 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 का भारत-पाक युद्ध, शांति सेना द्वारा ऑपरेशन पवन (1987-88) उसके बाद 1999 में पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने अपनी वीरता से दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए।

अब तक गढ़वाल राइफल्स की इन बटालियनों की स्थापना इस प्रकार है–

बता दें कि पहली गढ़वाल राइफल्स-5 मई 1887 को अल्मोड़ा में गाठित और 4 नवंबर 1887 को लैंसडौन में छावनी बनाई गई। उसके बाद द्वितीय गढ़वाल राइफल्स 1 मार्च 1901 को लैंसडौन में गठित। तृतीय गढ़वाल राइफल्स 20 अगस्त 1916 को लैंसडौन में। चौथी गढ़वाल राइफल्स, 28 अगस्त 1918 को लैंसडौन में । 5वीं गढ़वाल राइफल्स, एक फरवरी 1941 को लैंसडौन में, 6वीं गढ़वाल राइफल्स, 15 सितंबर 1941 को लैंसडौन में । 7वीं गढ़वाल राइफल्स, एक जुलाई 1942 को लैंसडौन में। 8वीं गढ़वाल राइफल्स, एक जुलाई 1948 को लैंसडौन में । 9वीं गढ़वाल राइफल्स, एक जनवरी 1965 को कोटद्वार में। 10वीं गढ़वाल राइफल्स- 15 अक्टूबर 1965 को कोटद्वार में। 11वीं गढ़वाल राइफल्स, एक जनवरी 1967 को बैंगलौर में । 12वीं गढ़वाल राइफल्स, एक जून 1971 को लैंसडौन में । 13वीं गढ़वाल राइफल्स, एक जनवरी 1976 को लैंसडौन में । 14वीं गढ़वाल राइफल्स, एक सितंबर 1980 को कोटद्वार में। 16वीं गढ़वाल राइफल्स, एक मार्च 1981 को कोटद्वार में । 17वीं गढ़वाल राइफल्स, एक मई 1982 को कोटद्वार में‌ । 18वी गढ़वाल राइफल्स, एक फरवरी 1985 को कोटद्वार में। 19वीं गढ़वाल राइफल्स, एक मई 1985 को कोटद्वार में ‌हुई।

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