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रंग, उमंग, हर्षोल्लास और खुशियों से भरे होली के त्योहार को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन और उसके दूसरे दिन होली मनाया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन स्नान-दान कर उपवास रखने, होलिका की अग्नि की पूजा से मनुष्य के सभी कष्टों का नाश होता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। होलिका दहन के दिन होली पूजन करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। मां लक्ष्मी की कृपा से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है।

होलिका दहन:
जलती होलिका की सात परिक्रमा करें और होलिका कोअर्ध्य भी दें। चौराहे पर होलिका दहन होने के बाद वहां से लाई हुई अग्नि से होलिका दहन करें। फिर लोटे का शुद्ध जल और पूजन की अन्य सभी वस्तुओं को श्रद्धाभाव से एक-एक करके होलिका में समर्पित करें। होलिका दहन होने के बाद होलिका में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग- गेहूं, चना, जौ भी अर्पित कर स्वयं भी पूरे परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें। मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार के सदस्यों को रोगों से मुक्ति मिलती है।
शुभ मुहूर्त:
इस बार होलिका दहन गुरुवार, 17 मार्च को है। इस दिन दोपहर डेढ़ बजे से पूर्णिमा लग जाएगी। पूर्णिमा की पूजा भी इसी दिन की जाएगी। होलिका दहन का मुहूर्त रात 9 बजकर 20 मिनट से रात्रि 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। यानी होलिका दहन के लिए कुल मिलाकर एक घंटा 10 मिनट का समय रहेगा।