
गणतंत्र से गन तंत्र की ओर…..

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आज गण के तंत्र का दिवस है, अगर गणतंत्र दिवस होता तो कल पुलिस यूँ छात्रों का आवाजों को दबा नही रही होती , छात्र जब अपने घरों से निकलता है तो उसके कंधे पर बोझ होता है, मां-बाप के सपनों का, बहन और भाई के अरमानों का, घर के मान सम्मान का ,और इन्हीं सब अरमानों को पूरा करने के लिए जब वह सलोरी, बघाड़ा या फिर किसी तिलक नगर या राजेंद्र नगर में 4×4 के कमरों में रहकर चटाई या दरी पर रात गुजरता है, तो उसके शरीर की पीड़ा उसके भविष्य और सपनों के आगे उसे बौनी प्रतीत होती दिखलाई पड़ती है। और उसी भविष्य के साथ सरकार जब खिलवाड़ करती है, कभी रिक्तियों के नाम पर तो, कभी परीक्षा में धांधली के नाम पर तो, कभी परीक्षाफल में देरी के नाम पर ,तो कभी पर परीक्षाफल में ही धांधली के नाम पर तो, वही छात्र जो अपने घर से अरमानों का बोझ लेकर घर से निकला हुआ होता है, वह बेबसी में सड़क पर निकल कर अपनी आवाज बुलंद करता है, कि उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ न किया जाए। यही आवाज, यही विनती, सरकार को नगावार गुजरती है, और सरकार की बौखलाहट पुलिस की लाठी के रूप में, पानी की बौछार के रूप में, या आंसू गैस के गोलों के रूप में, दिखलाई पड़ती है।

हम आजादी के 75 वीं वर्षगांठ मना रहा हैं। जिसे सरकार ने अमृत महोत्सव का नाम दिया है यही अमृत महोत्सव आज छात्रों के लिए विष का महोत्सव साबित हो रहा है। इन 75 सालों में सरकारों ने जनता को बहुत कुछ दिया भी है, औऱ जनता से बहुत कुछ लिया भी, पर इन 75 सालों में अगर सरकार न दे पाई तो वह है छात्रों को विश्वास। विश्वास इस बात का की वह रोजगार मुहैया कराएंगी, विश्वास इस बात का की छोटी से लेकर बड़ी जितनी भी परीक्षाएं होंगी उसमे कोई भी धांधली नही होगी, विश्वास इस बात का उन्होंने देश के लिए मुखिया नही चुना उन्होंने देश के लिए एक बेटा चुना है जो अपने देश के सभी माँओ के बच्चों के अरमानों का गला नही घुटने देगा।
आज छात्र , किसानों के भाँति आत्मदाह कर रहे हैं, अरमानों के बोझ तले फांसी के फंदे पर झूल रहे , इन सबके बावजूद छात्रों को मिलता है तो एक कागज का टुकड़ा जिस पर लिखा होता है , ” कि आपकी परेशानियों को हमने सुन लिया है, औऱ एक जांच समिति का गठन भी।” और यकीन करिये कि, इस जांच समिति की रिपोर्ट ना कभी आती है, और अगर आती भी है, तो सरकार ने इसे पेश करती है ना ही सार्वजनिक। इस तरह सरकारों ने देश के भविष्य या फिर यूं कहें देश के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले छात्रों के जीवन के साथ आंख मिचौली खेलने की भूमिका को बेहतरीन तरीके से निभा रहा है, और इसमें धप्पा भी हर बार छात्रों को ही लगता है। गणतंत्र दिवस के चकाचौंध भरे महोत्सव के आगे एक बार फ़िर से छात्रों के आवाजों को दबा दिया जाएगा। एक बार फ़िर से पृथ्वी पर अवस्थित सभी देशों को यह दिखला एवं बतला दिया जाएगा कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत है। अगर नही दिखलाया जाएगा तो “गन” के आगे छात्रों के टूटते हौसला, नही दिखाया जाएगा तो आंसू गैस से तितर-बितर करते छात्रों को। आप सभी पाठकों को एक बार फ़िर से टूटे हुए हौसलें से , विष से भरे इस अमृत महोत्सव की ढेर सारी शुभकामनाएं।
सूर्य प्रकाश