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भाजपा से निष्कासित किए गए पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत अब कांग्रेस के सिपहसालार हो गए हैं। दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता लेते समय हरक सिंह रावत के सिर पर हरीश रावत ने भले ही हाथ रख दिया हो लेकिन वे साल 2016 के जख्म नहीं भुला पाएंगे। हरक की कांग्रेस में वापसी के लिए सबसे अधिक विरोध हरीश रावत ही कर रहे थे। लेकिन चुनाव और पार्टी हाईकमान के दवाब के आगे हरीश रावत को समझौता करना पड़ा है। अब उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में छह साल बाद एक बार फिर से हरक, हरीश रावत के सारथी के रूप में नजर आएंगे। लेकिन यह सच है कि हरीश और हरक का 36 का आंकड़ा जगजाहिर है। हरक सिंह रावत 2016 में कांग्रेस की सरकार गिराने के सूत्रधार भी माने जाते हैं, हरक सिंह रावत समेत नौ विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे। उत्तराखंड की भाजपा सरकार में मंत्री रहते हुए हरक सिंह रावत कई मौकों पर हरीश रावत पर कटाक्ष और जुबानी हमले करते रहे हैं। हरक सिंह रावत के राजनीतिक करियर पर नजर डालें तो उन्होंने कई मौकों पर बगावती तेवर दिखाए हैं। हरक सिंह उत्तराखंड के बड़े नेता माने जाते हैं। वे 2002 में उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से लगातार चार बार के विधायक हैं। हरक का यह है राजनीतिक करियर । 1991 में पौड़ी सीट पर जीत दर्ज की और तब उत्तर प्रदेश की तत्कालीन बीजेपी सरकार में उन्हें पर्यटन राज्यमंत्री बनाया गया। 1993 में बीजेपी ने एक बार फिर पौड़ी सीट से अवसर दिया और वे फिर से जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंचे। 1998 में टिकट न मिलने से नाराज हुए हरक ने बीजेपी का साथ छोड़ते हुए बसपा की सदस्यता ली । उत्तराखंड में 2002 में हुए विधानसभा के पहले चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर लैंसडौन सीट से जीते। 2007 में उन्होंने एक बार फिर लैंसडौन सीट से जीत दर्ज की। तब नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी मिली। 2012 के चुनाव में हरक ने सीट बदलते हुए रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़ा और विधानसभा में पहुंचे। साल 2016 में कांग्रेस को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें कोटद्वार सीट से मौका दिया और जीते। तभी से हरक सिंह रावत और हरीश रावत के बीच तकरार चली आ रही थी। फिलहाल राज्य में विधानसभा चुनाव को देखते हुए दोनों नेता एक साथ आ गए हैं लेकिन आगे दोनों का साथ कितना चलेगा यह वक्त बताएगा।