
एमएसपी पर किसान संगठनों की अहम बैठक आज, 29 नवंबर की तय तारीख पर हीं होंगे संसद तक ट्रैक्टर मार्च

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरु गोविंद सिंह पर पर्व पर कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के दूसरे दिन शनिवार को सिंघु बॉर्डर पर पंजाब से जुड़े किसान संगठनों ने बैठक की गई। इस बैठक में तय किया गया है कि 22 नवंबर को प्रस्तावित लखनऊ रैली व 29 नवंबर को संसद मार्च के आयोजन का कार्यक्रम पूर्ववत रहेगा। इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं होगा।
इस फैसले पर अंतिम मुहर लगाने के लिए रविवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक होगी। इसमें प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद पैदा हुए हालात व किसान आंदोलन की आगे की रणनीति तय की जाएगी।
बता दें की किसान संगठनों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी व बिजली संशोधन कानून को रद्द किए बगैर आंदोलन वापस लेने की कोई योजना नहीं है।
आज सिंघु बॉर्डर पर होने वाली संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक को बेहद अहम मानी जा रही है। इसमें पिछले एक साल के गतिरोध के बाद तीनों कृषि कानूनों को निरस्त की घोषणा के बाद की हालात पर चर्चा होगी। मोर्चा की इस बैठक में गतिरोध समाप्त करने के लिए वार्ता, आंदोलन की रणनीति सहित कुछ और पहलुओं पर भी आज निर्णय लिए जाने की उम्मीद है। हालांकि, अभी तक किसान संगठनों ने दिल्ली की सीमाओं से हटने के संकेत नहीं दिए हैं। किसानों का कहना है कि जब तक एमएसपी, सहित दूसरी मांगें नहीं मानी जाती हैं, विरोध जारी रहेगा।
वहीं किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी का कहना है कि अभी यहां से जाने का समय नहीं आया है। किसान आंदोलन की भेंट चढ़े किसानों के आश्रितों को मुआवजा और दर्ज हो चुके मुकदमों को खारिज किए जाने तक यहीं रहेंगे। इस संबंध में रविवार को संयुक्त किसान मोर्चा की रविवार को बैठक होगी। इसमें आंदोलन के आगे के रण नीति पर फैसला किया जाएगा।
किसानों द्वारा की जा रही मांगें:
संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के बाद भी कुछ लंबित मांगें हैं। देश के किसान कई वर्षों से सभी कृषि उत्पादों के लिए कानूनी रूप से गारंटी और लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके लिए जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किए जाते रहे हैं। उचित एमएसपी के लिए वैधानिक गारंटी की मांग मौजूदा आंदोलन का एक अभिन्न अंग है।विद्युत संशोधन विधेयक को पूरी तरह से वापस लेने, किसानों को दिल्ली में वायु गुणवत्ता विनियमन पर कानून से संबंधित दंडात्मक धाराओं से बाहर रखने की भी मांग कर रहा है। इन मांगों के पूरा होने के बाद ही किसान अपने घर लौटेंगे। तीनों कृषि कानूनों पर घोषणा के बाद सरकार अन्य मांगों पर चुप है। इनपर फैसला लेने के बाद ही आंदोलन का रुख तय होगा। इसके साथ हीं संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से जारी आंकड़े के मुताबिक किसान आंदोलन में अब तक 670 से अधिक किसान जान गंवा चुके हैं। सरकार की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि देना तो दूर उनके बलिदान को भी नहीं स्वीकार किया गया। आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को मुआवजा देने, आश्रितों को रोजगार देने सहित उन किसानों के नाम पर एक स्मारक बनवाने की मांग की है। साथ हीं लखीमपुर खीरी हत्याकांड में किसानों की हत्या के मामले केंद्रीय मंत्री को गिरफ्तार कर केंद्रीय मंत्री को परिषद से बर्खास्त करने की संयुक्त किसान मोर्चा ने मांग की है।