कुछ दिनों से जैसे राज्य सरकारों की आपस की लड़ाई संकेत दे रही है कि अब हम दिल्ली आलाकमान की बात मानने के लिए ‘बाध्य’ नहीं हैं । आज हम बात कर रहे हैं भाजपा और कांग्रेस की। ‘दोनों पार्टियों की राज्य सरकारों को अब दिल्ली हाईकमान के फरमान पसंद नहीं आ रहे हैं’। बात शुरू करते हैं उत्तर प्रदेश की। यूपी की योगी सरकार में बदल करने को लेकर पिछले एक महीने से दिल्ली बीजेपी हाईकमान (पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा) ने अकेले में और संघ के शीर्ष नेताओं के साथ ‘दर्जनों मीटिंग’ की । लेकिन आखिर में वही युवा जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चाहते थे। थक हार कर दिल्ली हाईकमान ‘बैकफुट’ पर आ गया। इसके बाद योगी ने आलाकमान को साफ संकेत दे दिए कि अब यूपी में चाहे आगामी विधानसभा चुनाव, मंत्रिमंडल में विस्तार या अन्य योजनाओं का फैसले लेने में हमारी सरकार सक्षम हैं। ऐसे ही राजस्थान की गहलोत तो पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार अपनी ही पार्टी के नेता से काफी समय से टकराव चला रहा है। लेकिन ‘दिल्ली कांग्रेस हाईकमान यानी गांधी परिवार अपनी ही इन दोनों राज्य सरकारों के झगड़े को सुलझा नहीं पा रहा’ । पिछले दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेस के नेता नवजोत सिंह सिद्धू की तनातनी इतनी बढ़ गई थी कि दोनों नेताओं को आलाकमान ने दिल्ली ‘तलब’ किया। ‘कैप्टन, सिद्धू दिल्ली आए जरूर लेकिन जब यह दोनों पंजाब लौटे तो फिर से दोनों ने एक दूसरे पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया’। अभी अमरिंदर और सिद्धू का विवाद जारी है। सही मायने दोनों नेताओं ने सोनिया गांधी और राहुल की सुलह समझौता और सफाई को ‘दरकिनार’ कर दिया है। अब बात करेंगे राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की। दोनों के बीच पिछले वर्ष अगस्त से शुरू ‘सियासी जंग’ अभी भी थमने का नाम नहीं ले रही है। ‘इन दिनों तो गहलोत सरकार में जबरदस्त उठापटक का दौर एक बार फिर से जारी है, गहलोत और पायलट गुट के विधायकों ने आर-पार की लड़ाई के लिए पूरा मूड बना लिया है’। जिससे राजस्थान की सियासत गरमाई हुई है। कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व ने पिछले साल से कई बार इन दोनों नेताओं को मनाने की कोशिश की। राजस्थान के पर्यवेक्षक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन को जयपुर के कई चक्कर लगाने पड़े, लेकिन अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच ‘दरार’ खत्म नहीं कर सके। दोनों नेताओं के आपसी मतभेद कम होने के बजाय बढ़ते जा रहे हैं। राजस्थान सरकार को एकजुट करने में अब गांधी परिवार का फरमान और आदेश ‘असरदार’ दिखाई नहीं पड़ रहा है। सही मायने में कांग्रेस दिल्ली नेतृत्व अपने ही राज्य सरकारों के बीच मची गुटबाजी को सुलझाने में सफल होता दिखाई नहीं दे रहा है।
यूपी के बाद भाजपा के लिए एमपी की शिवराज सरकार में भी बढ़ रही गुटबाजी–
अब बात करते हैं भाजपा हाईकमान की ‘नए सिरदर्द’ की। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बाद अब ‘मध्यप्रदेश शिवराज सरकार में भी गुटबाजी के स्वर खुलकर उभरने लगे हैं, शिवराज सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की हलचल शुरू हो गई है’। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बीच ‘टकराव’ बढ़ता जा रहा है। ‘इसका कारण यह है कि पिछले एक वर्ष से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय भारतीय जनता पार्टी की बंगाल में सरकार बनाने के लिए कोलकाता की सियासी गलियारों में डेरा जमाए हुए थे, लेकिन भाजपा की हुई बंगाल में हार के बाद विजयवर्गीय अपने गृह राज्य मध्यप्रदेश लौट आए’। पिछले कई दिनों से वह भोपाल में शिवराज सरकार का ‘आत्ममंथन’ करने में लगे हुए हैं। वैसे भी इन दिनों कैलाश विजयवर्गीय के पास कोई खास काम भी नहीं है। इन चर्चाओं की शुरुआत पिछले दिनों भोपाल में विजयवर्गीय की मौजूदगी से हुई है । वे भोपाल में पार्टी के अलग-अलग नेताओं से मिल रहे थे। इसके साथ ही आरएसएस और संगठन के बड़े नेता भी भोपाल में मीटिंग कर रहे थे । इसके साथ ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी भोपाल में अलग-अलग नेताओं से चर्चा करने के बाद सीएम शिवराज से मुलाकात की थी। इसके साथ ही सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश ने भी भोपाल में कई नेताओं से मिले, इस दौरान केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल भी मौजूद रहे । इसके साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रभात झा ने भी पिछले दिनों ने नरोत्तम मिश्रा से मुलाकात की थी। वहीं दिल्ली में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के आवास पर भी बीजेपी नेताओं की बैठक हुई। इसके बाद एमपी शिवराज चौहान सरकार में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर ‘अटकलेें तेज हो गई। हालांकि कैलाश विजयवर्गीय ने अटकलों को भले ही खारिज कर दिया है लेकिन इतना जरूर है कि राजधानी भोपाल में इन दिनों ‘सियासी पारा’ चढ़ा हुआ है। बुधवार को एक बार फिर भोपाल में कैबिनेट बैठक के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बीच तनातनी सामने आ गई। कैबिनेट के दौरान नर्मदा नदी के जल बंटवारे को लेकर नरोत्तम मिश्रा की राज्य के मुख्य सचिव से सवाल किए और नाराजगी जताई। बता दें कि नर्मदा घाटी विकास मंत्रालय मुख्यमंत्री के पास है और मीटिंग में शिवराज की मौजूदगी में ही गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने अपनी आपत्ति जताई। बैठक के बाद नरोत्तम मिश्रा सीधे ही वहां से ‘नाराज’ होकर निकल गए। ‘नरोत्तम और शिवराज का पिछले साल से ही 36 का आंकड़ा चल रहा है’। मध्य प्रदेश भाजपा के ब्राह्मण लॉबी में मिश्रा की अच्छी पकड़ मानी जाती है। इसके साथ वे संघ के भी करीबी हैं। ‘साल 2020 के मार्च महीने में भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर कमलनाथ सरकार गिरा दी थी। उसके बाद नरोत्तम मिश्रा भी मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल थे। लेकिन शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद के पर काबिज हो गए थे, तभी से दोनों के बीच मनमुटाव चला रहा हैै’। अब भाजपा हाईकमान के लिए आने वाले दिनों में एमपी की शिवराज सरकार में तालमेल बिठाना बड़ी चुनौती हो सकती है। वैसे अब सच्चाई यह है कि राज्य सरकारें अपने-अपने पार्टी हाईकमान के फरमान को दरकिनार करने में लगी हुई हैं। इसका उदाहरण हम राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश में देख रहे हैं।