

चिड़ियों चहचहाहट ने मेरी आंखें खोल दी ,जाने कब शाम के साढ़े छह बज गए और पता भी ना चला या फिर इतने दिनों बाद जो सकून कि नींद थी उस से उठने का दिल ही ना हुआ।आज लॉकडाउन का पांचवां दिन था ,सुबह से शाम तक कुछ मिला ही नहीं काम करने को।जाने इतने मशीन से कब बन गए थे हम।
सुबह से शाम तक भाग दौड़ के इतने आदि बन गए थे कि खुद के लिए अपने परिवार के साथ बिताने के लिए मिला समय भी बोझिल सा गुजरने लगा, शायद आदतन हम मजबूर थे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी और भाग दौड़ पर।खैर सोचा चाय बनाई जाए खुद के लिए ,पानी गरम करने को गैस पर चढ़ा कर खुद को ऑनलाइन किया ताकि बोर ना हो जाऊ, नेट के बिना ना रहने की आदत को ठहरी।नोटिफिकेशंस की टन टन टन की आवाज ,ने खबर देखने के लिए मजबूर कर दिया था। ऐ न आई, आज तक,दैनिक जागरण ,दैनिक भास्कर सारे ऑनलाईन एप्प के नोटिफिकेशंस आने सुरू हो गए।
दरअसल पेशे से नई पत्रकार हूं ,और खबरों पर नजर रखने की आदतों से मजबूर हूं लेकिन होम क्यूकोरेंटाइल की वज़ह से घर में बैठी हूं। वैसे इन सारे ऐप्स से खुद को पीछे ना रखने की आदत भी लगा रखी है मैंने ताकि कोई खबर ना पता हो तो पता हो जाए और यह अफसोस ना रहे की मुझे इसके बारे में कुछ पता ही ना था। इन सारे नोटिफिकेशंस में मुझे मुझे एक ही तस्वीर दिखी जो सायद मुझे या आपको भी सोचने के लिए मजबूर कर दे आंनद विहार का बस अड्डा।हजारों की भीड़ वहां से अपने घर जाने के लिए जमा थें ,जहां सरकार की ना तो लोक डाउन का असर दिख रहा था ना ही कोरोंना का ,दिख रही थी तो बस इनकी बेवसी ,और मजबूरी जो पैदल भी घर जाने के लिए मजबूर थे। भारत में लगभग हजार के आंकड़े सामने आए है कोविड 19 के, और प्रधानमंत्री के आदेश के अनुसार भारत को लॉक डाउन किया गया ताकि ये संक्रमण ज्यादा ना फैले। ऑफिस ने तो वर्क फ्रोम होम कर दिया,लेकिन आज जो भीड़ आंनद विहार बस अड्डे पर दिख रही है वो कौन हैं?
क्या उन्हें वर्क फ्रोम होम की सुविधा नहीं मिली है??जनाब ये वही लोग हैं जिन्होंने मुंबई,दिल्ली,नोएडा जैसे जगहों कि इमारतें बनाई है और हमें घर दिया, ये वही लोग हैं जनाब जिन्होंने अपनी मेहनत से हमे जब चाहा तब फल ,फूल ,सब्जियों और खाने की चीजों को उपलब्ध कराएं चाहे रात हो या दिन खुद की परवाह किए बिना होम डिलीवरी से लेकर बाजार तक चीजों को पहुंचाया।तो यह बोलने से पहले सोच लें कि उन्हें यह समझ नहीं है कि भीड़ ना लगाएं,इतने लोग बस में ना जाएं जरूरत है उनकी मदत करने की ,ताकि वो यहां से जाएं ही नहीं।
क्यों की ना तो उनके पास घर है ,ना ही वर्क।यह वक्त है एकजुट रहने का, यह वक्त है सबका साथ निभाने का और यह वक्त है अपनी जिम्मेदारियों को समझने का, क्योंकि विश्व मुश्किल दौर से गुजर रहा है। ऐसे में यहां जरूरत है संयम और संकल्प की ताकि हम कोरोनावायरस पर विजय प्राप्त कर सकें और उन लोगों की मदद करने की जिन्होंने आज तक हमारी मदद की।जरूरत है आगे आकर उनलोगों की जरूरत में योगदान करने की ताकि वो भी अपने घर में सुरक्षित रह सकें। आशा है आपको मेरी बातें थोड़ी समझ में आई होगी, क्यों की थोड़ा ही मैंने लिखा भी है। घर में अपने परिवार के साथ रहें और एक दूसरे की साथ समय बिताए।